बुधवार, 24 अगस्त 2011

दोस्ती

 ये दौलत भी ले लो , ये शोहरत भी ले लो , भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी ।
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन , वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी ।।

जगजीत सिंग के ये बोल पिछले कुछ दिनों से लगातार मेरे कानों मे गूंज रहे है । मेरे पास आज वो सब कुछ है जो एक व्यक्ति को खुशहाल जीवन बिताने के लिए चाहिए पर पता नही क्यूँ कुछ अधूरापन सा है , बहुत सोचने के बाद एहसास हुआ की जिनके साथ मिलकर इन सब चीजों का मजा लेने का सोचा था वे तो है ही नही , कोई रायगढ़ मे प्लांट मे जान दे रहा है तो कोई कोरबा मे धूल खा रहा है , कोई दिल्ली मे काम के दबाव मे रोबोट बन बैठा है तो कोई मुबंई मे इमारतों का जाल खड़ा करने मे लगा है , कभी साथ बैठकर सपने बुनने वाले हम सब आज जिंदगी की उधेड़बुन और कश्मकश मे इतनी बुरी तरह उलझ गए है कि चाह कर भी खुद के लिए कुछ पल नही निकल पा रहे है । एक दौर था जब जेब मे पैसे नही थे , पास मे गाड़ी नही थी पर फिर भी सुकुन था ।

आज भी याद है वो पल जब हमारे ग्रुप का कोई मेम्बर अपनी किसी खास से मिलने कैफेटेरिया जाता था तो हम सब मिलकर पैसे जमा करते थे और  5-5, 10-10 रुपये मिलाकर 100 के आकड़े को मुश्किल से छू पाते थे लेकिन जब वह बंदा लौटकर हमे बताता था की मैने अपनी खास को ये खास आईटम खिलाया तो ऐसा लगता था मानों सभी ने उस व्यंजन का मजा ले लिया हो , ये वो दौर था जब अपने इलाके के हर छोटे-मोटे होटल मे हमारे नाम से उधारी चलता था और जब कोई बुजुर्ग हमे समझाता की उधारी की आदत ठीक नही है तो हम पलट कर कहते थे कि पूरी भारत सरकार कर्जे मे डूबी हुई है , हमने 50-100 रुपये उधार कर लिया तो क्या गुनाह कर दिया ।

कुछ समय गुजरा और 10th तक पहुँचते पहुँचते कुछ भाईयों को लवेरिया  नामक बीमारी ने पकड़ लिया तब हमे मालूम चला की दुनिया मे कैंसर-वैंसर कुछ नही है सबसे बड़ी बीमारी तो लवेरिया है , जिसे समझाने की कोशिश की वो हमसे दूर होता चला गया तब हमें लड़कियो की ताकत का एहसास हुआ ।
लड़किया हमसे भी इम्प्रेस थी क्यूंकी स्कूल मे हमारा एकछत्र राज था और कई बार विवाद की स्थिति मे हम ही फैसला सुनाते थे की कौन किसके पीछे पड़ेगा , लड़कियो को स्कूल के बाहर के लड़को से सुरक्षा देने का ठेका भी हमारा ही था जिसने कई विश्वयुद्ध कराये और लड़कियो मे हमारी पैठ बनायी . धीरे से हममे भी उस बीमारी के लक्षण पाये गए और उन समस्त लोगो को मुँह खोलने का मौका मिल गया जिन्हे कभी हमने ज्ञान दिया था , इसका परिणाम भी जल्द आया और 12th  के रिजल्ट ने हमारे कैरियर पे दाग लगाने पे कोई कसर नही छोड़ी , तब जाकर एहसास हुआ की जीवन उतना सरल नही है जितना हम कभी सोचते थे वरना कभी नायक नही खलनायक हूँ  मै   जैसे गानो पर झूमते हुए हमने सचमुच खलनायक को नायक से बड़ा मान लिया था . उस समय हम गर्व से कहते थे की इस शहर मे हमारा ग्रुप ही राज करेगा । पुलिस भी हममे से ही होगा और चोर भी , नेता भी हममे से ही होगे और अभिनेता भी . पर आज उस छोटे से प्यारे शहर मे कोई भी अपना नही बचा , रोजी रोटी की जुगाड़ मे सभी ने अलग-अलग पाँव जमा लिए ।
हमारी दोस्ती इतनी गहरी  थी की 5 लोगो ने मैथ्स लेने का प्लान किया तो 15 लोगो ने मजबूरी मे दोस्ती निभाने के लिए ये फैसला किया , ये वो दौर था जब रात को भी अगर किसी का कोई पंगा हो जाये तो हम निकल जाते थे और आज दोस्त के जीवन के सबसे कठिन घड़ी शादी  मे जाने से पहले 10 बार आँफिस शेड्यूल के बारे मे सोचना पड़ता है , मुझे पता है की वो दौर कभी नही आएगा पर मुझे विश्वास है कि इसे पढ़ने के बाद तुम लोगो का काँल जरुर आएगा
तुम्हारा
दुबे महराज
     
                                     






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